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लेखनी कहानी -12-Oct-2022 इच्छा शक्ति

"इच्छा" ने शहर की मशहूर कॉलेज में प्रवेश ले लिया था । भगवान ने उसे बनाया भी फुरसत से था इसलिए वह सबके दिलों की रानी बन गई । सब लोग "इच्छा" को चाहने लगे इससे इच्छा सातवें आसमान पर पहुंच गई । वह अपने आगे किसी को कुछ गिनती ही नहीं थी । सुंदरता के साथ अभिमान का चोली दामन का साथ होता है । फिर "इच्छा" तो सबके दिलों पर राज कर रही थी तो भला उसे अभिमान क्यों नहीं होता ? 

पर उसका यह एकाधिकार बहुत ज्यादा दिनों तक बरकरार नहीं रह पाया । कॉलेज में ही एक और लड़की "शक्ति" ने प्रवेश ले लिया था । क्या बॉडी थी "शक्ति" की । एकदम गठीला बदन था उसका । इतनी ताकत थी उसमें कि वह कुछ भी कर सकती थी । इच्छा बहुत इतराती थी और वह हर किसी को भाव भी नहीं देती थी । मगर जब उसने "शक्ति" को देखा तो वह उससे कन्नी काट गई । अब एक म्यान में दो तलवार हो गई थीं । दोनों ही नकचढी थी । शक्ति तो वास्तव में "शक्ति स्वरूपा" थी तो उसे भी अपनी ताकत पर घमंड होना स्वाभाविक था । दोनों लड़कियां अपने अपने अहं में जिंदा रह रही थीं । 

पूरी कक्षा दो धड़ों में बंट गई । लड़के इच्छा के फैन थे क्योंकि लड़कों की कमजोरी "सुंदर लड़कियां" होती हैं और वे सब इनकी "इच्छा" करते ही हैं । इसलिए समस्त लड़कों का वोट "इच्छा" के लिये था । मगर लड़कियां "इच्छा" को फूटी आंखों से भी देखना नहीं चाहती थीं । लड़कियों में ईर्ष्या भाव बहुत अधिक होता है । विशेष कर सुंदर लड़कियों में । हर लड़की अपने आप को सबसे सुंदर मानती है इसलिए ईर्ष्या भाव हर लड़की में प्रचुर मात्रा में होता है । 

चूंकि सब लड़के "इच्छा" के दीवाने थे तो यह बात बाकी लड़कियों को कैसे हजम होती ? इसलिए वे स्वभावत: "इच्छा" के विरुद्ध हो गईं । इसके अतिरिक्त "शक्ति" तो "शक्ति स्वरूपा" थी और प्रत्येक लड़की भी "शक्ति स्वरूपा" ही होती है तो स्वाभाविक रूप से वे सब "शक्ति" के खेमे में चली गईं । दोनों खेमे बराबर हो गये । 

अब समस्या यह आई कि पूरी कक्षा दो खेमों में बंटी होने के कारण कोई भी काम पूरा होता ही नहीं था । अगर "इच्छा" कोई काम करना भी चाहे तो "शक्ति" उसे विफल करने में लग जाती । इसी प्रकार कोई काम शक्ति करना भी चाहती थी तो बिना "इच्छा" के वह कर नहीं पाती थी । पूरी क्लास परेशान थी उन दोनों के झगड़ों से । 

आखिर एक दिन पूरी क्लास ने इस झगड़े को हमेशा के लिए खत्म करने की ठान ही ली । दोनों नायिकाएं अपने अपने चेले चपाटों के साथ वार्ता की टेबल पर बैठीं । दोनों ओर से शिकवा शिकायतों के दौर चले । चेले चपाटों ने भी उन्हें बहुत समझाया । लड़के भी चाहते थे कि यह मुद्दा जल्दी से सुलझे जिससे वे लड़कियां "पटा" सकें । क्योंकि इस गुटबाजी से सारी लड़कियां लड़कों के खिलाफ हो गईं थीं । इस तरह अगर लड़कियां लड़कों से दूर दूर रहें तो भला लड़के कैसे जियें ? उनके प्राण तो लड़कियों में ही बसते हैं । बिना लड़कियों के उन्हें एक पल को भी चैन नहीं था ।  वैसे चैन तो लड़कियों को भी नहीं आ रहा था । अब उनके हुस्न के कसीदे पढने वाला कोई नहीं था कक्षा में । जब तक दो चार लड़के किसी लड़की के आगे पीछे नहीं घूमें तब तक उन्हें आनंद ही नहीं आता था । वह हुस्न ही क्या जिसकी प्रशंसा नहीं हो ? लड़कियां इस स्थिति से तंग आ गई थीं । इसलिये समझौते का माहौल तैयार था । 

दोनों गुटों के चेलों ने अपने अपने नेताओं को यह समझाया कि केवल "इच्छा" करने मात्र से कुछ नहीं होता है । उसे पाने के लिए प्रयास करना होगा और यह प्रयास बिना शक्ति के हो ही नहीं सकता है । इसलिए "इच्छा" और "शक्ति" दोनों का पृथक पृथक रूप से कोई महत्व नहीं है । यदि ये दोनों साथ आ जायें तो ऐसा कोई काम नहीं जो पूरा नहीं हो सके । बस, तब से ही "इच्छा" और "शक्ति" एक साथ रहने लगीं । ये दोनों जहां पर एक साथ दिखाई देंगी समझ लो कि वह कार्य सौ प्रतिशत हो जायेगा वरना वह कार्य कभी पूरा नहीं हो पायेगा । "इच्छा" और "शक्ति" को गुरू मंत्र मिल गया था । 

श्री हरि 
12.10.22 


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11 Comments

दशला माथुर

14-Oct-2022 07:02 PM

बहुत सुंदर 👌

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बेहतरीन रचना

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shweta soni

14-Oct-2022 03:46 PM

Very nice

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